मंत्र: एक आध्यात्मिक यात्रा

 


 


   मंत्र: एक आध्यात्मिक यात्रा


मित्रों नमः,


आज मैं मंत्र के बारे में अपने 15 वर्षों के अनुभव को साझा करना चाहता हूँ। आप सब सोच रहे होंगे कि मैंने "मित्रों नमः" से अपनी बात शुरू क्यों की? चलिए, बताता हूँ।


आप सभी के विचार में कभी न कभी यह जरूर आया होगा कि मंत्र क्या है और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई। मेरे मन में भी यह प्रश्न बचपन में उठता था। मैंने लगभग 10-11 वर्ष की आयु से मंत्र साधना शुरू की थी। बचपन से ही मुझे किताबें पढ़ने का शौक था, चाहे वे प्राचीन ग्रंथ हों या तंत्र-मंत्र की किताबें। आज भी यह शौक बरकरार है। हमारे गाँव में जंगल नहीं था, और जब मुझे साधना करनी होती तो मैं दोपहर के समय खेत-खलियान चला जाता था, क्योंकि उस समय वहां कोई नहीं होता था।


क्षमा करें, मैं बचपन की यादों में खो गया था। अब मुद्दे पर आता हूँ। बचपन की बातें किसी और दिन जरूर साझा करूंगा। 


तो, चलिए जानने की कोशिश करते हैं कि मंत्र क्या है। बचपन से मैंने मंत्र अनुष्ठान और सवा-सवा लाख का जाप बहुत किया, किताबों और किताबी गुरुओं के बताए अनुसार। इन्हें 'किताबी गुरु' इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि ये प्राचीन ग्रंथों और किताबों से ज्ञान प्राप्त कर गुरु बने हैं। यह सुनकर कुछ लोगों को बुरा लग सकता है, इसके लिए क्षमा करें। 


किताबों और गुरुओं के अनुसार मंत्रों में ॐ नमः शिवाय, ॐ हनुमंते नमः, गायत्री मंत्र, दुर्गा मंत्र आदि शामिल हैं। प्राचीन समय में संस्कृत भाषा का चलन था, जिसका कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन वेदों में जो लिखा गया वह प्रार्थना स्तुति है, मंत्र नहीं। संस्कृत में लिखा होने के कारण शायद सभी ने इसे मंत्र समझ लिया।


मैं इसे समझाने की कोशिश करता हूँ। उदाहरण के तौर पर, मैंने शुरुवात की थी "मित्रों नमः" से, जिसका हिंदी अनुवाद है "मित्रों को प्रणाम" या "मित्रों का सम्मान करना।" इसी प्रकार ॐ नमः शिवाय का अर्थ है "मैं शिव को प्रणाम करता हूँ" या "शिव को नमन करता हूँ।"


उम्मीद है, अब आप सभी को यह समझ में आ गया होगा। ये सब मैं अपने अनुभव और ज्ञान से बता रहा हूँ। अगर किसी को ठेस पहुंची हो तो क्षमा करें। 


मेरे अनुसार, मंत्र वास्तव में बीज मंत्र होते हैं, जैसे ॐ, रं, श्रीं, क्लीं आदि। बाकी सब प्रार्थना स्तुति हैं। शायद इसी वजह से साधनाओं में सफलता नहीं मिल पाती। शिव के डमरु से उत्पन्न ध्वनियों को वैदिक मंत्रों और संस्कृत भाषा के अक्षरों की उत्पत्ति का स्रोत माना जाता है। ध्वनियों से अक्षर उत्पन्न हुए थे, जो शायद बीज मंत्र ही रहे होंगे। शास्त्रों के अनुसार ध्वनियों से 14 अक्षर उत्पन्न हुए थे।


बीज मंत्र के जप से ध्वनि कंपन तरंग उत्पन्न होती हैं। किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले नींव लगाना पड़ता है, वृक्ष लगाने के लिए बीज लगाना पड़ता है। उसी प्रकार आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए मंत्र (यानि बीज) जप करना होता है। ॐ नमः शिवाय (शिव को नमन) कितनी बार बोलेंगे? किसी को नमस्कार एक ही बार बोला जाता है।


बीज लगाने के बाद पानी और खाद देना पड़ता हैं, तुरंत वृक्ष नहीं बन जाता। समय लगता है, सालों। उसी प्रकार मंत्र (बीज) जप (पानी, खाद) करना पड़ता है। फिर वर्षों के जप (पानी, खाद) से आध्यात्मिक शक्ति (वृक्ष) बन जाती है। 


और मेरे विचार से मंत्र जप माला से नहीं करना चाहिए। मंत्र का मतलब मनन करना होता है। मन ही मन जप करना होता है। ध्यान केवल मंत्र में होना चाहिए, जप संख्याओं या माला में नहीं। सवा लाख जप या 11 हजार जप अभी के पंडितों और गुरुओं ने बनाया है। प्राचीन ग्रंथों में यह नहीं लिखा होगा, क्योंकि प्राचीन समय में मौखिक ज्ञान का प्रचार होता था।


मंत्र जप करते समय इतना ध्यान में खो जाएं कि सब भूल जाएं। मंत्र जप और समय का भान न रहे। उसी को उत्तम मंत्र जप कहते हैं। मेरे विचार से बीज मंत्र का जप साधना करना चाहिए। शक्तियां आपके भीतर होती हैं। मंत्र रूपी बीज लगाने के बाद खाद-पानी रूपी जप से वृक्ष रूपी शक्ति प्राप्त होती है।


अब मैं आपको अपने मंत्र साधना के अनुभवों के कुछ और पहलुओं से परिचित कराना चाहता हूँ। जब मैंने मंत्र साधना शुरू की, तब मुझे यह नहीं पता था कि किस प्रकार मंत्र का सही उच्चारण और साधना की विधि का पालन करना चाहिए। मैंने शुरुआत में कई किताबें पढ़ीं और अपने आप ही मंत्र जप करने लगा। धीरे-धीरे मुझे मंत्रों की शक्ति और उनकी प्रभावशीलता का अनुभव होने लगा।


मंत्र जप के दौरान मैंने महसूस किया कि यह एक ध्यान और आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया है। मंत्र जप करने से मन स्थिर होता है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह एक प्रकार का ध्यान है जो मन को एकाग्र करता है और आत्मा को शुद्ध करता है। 


मंत्र जप का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसे नियमितता और संयम के साथ करना चाहिए। नियमितता से मंत्र जप करने से मन में एक स्थायित्व आता है और साधना में सफलता मिलती है। संयम से मंत्र जप करने से मन की अशांति दूर होती है और आत्मा में शांति का अनुभव होता है।


मंत्र जप के दौरान मैंने यह भी पाया कि इसे एकांत में करना अधिक प्रभावी होता है। एकांत में मंत्र जप करने से मन को एकाग्रता मिलती है और साधना में सफलता मिलती है। मैं अक्सर एकांत में खेत-खलियान या किसी शांत स्थान पर मंत्र जप करता था, जहां कोई व्यवधान नहीं होता था।


मंत्र जप के दौरान मैंने यह भी पाया कि इसे सही उच्चारण और सही विधि के साथ करना चाहिए। सही उच्चारण से मंत्र की शक्ति बढ़ती है और साधना में सफलता मिलती है। मैंने कई बार गलत उच्चारण के कारण साधना में असफलता का अनुभव किया, लेकिन सही उच्चारण और विधि का पालन करने से सफलता प्राप्त हुई।


मंत्र जप के दौरान मैंने यह भी पाया कि इसे संख्याओं या माला के माध्यम से नहीं करना चाहिए। मंत्र का मतलब मनन करना होता है, न कि संख्याओं या माला के माध्यम से जप करना। मन ही मन मंत्र का जप करना चाहिए और ध्यान केवल मंत्र में होना चाहिए, न कि संख्याओं या माला में। 


आज के लिए बस इतना ही। अगर मेरी किसी बात से आप सभी को बुरा लगा हो या कोई बात गलत लगी हो तो क्षमा करें।


आपका अपना,

सुमित देवा।

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